महावीर जयंती पर महावीर के जैनियों से कुछ प्रश्न ?

मान लो की भगवान  महावीर आज पुन: धरती पर  आए,उनकी जयंती की बधाइयों को देख कर ,  हमारा  जीवन शैली देख कर हमसे क्या  क्या  प्रश्न कर  सकते है  ?

  • क्या सचमुच   तुम्हें  मेरी (महावीर) की जरूरत है ?
  • जैन लिखने से ज्यादा जैन आचरण नहीं जरूरी है ?
  • क्या तुम मेरी बात मानते हो ? हाँ तो फिर मेरे  सिद्धांतो को मानने की बजाय नाम का प्रदर्शन क्यों करते हो ?
  • मेरे जन्म पर पुजा करके  ,जुलूस निकाल कर ,नारे लगा कर ,नए कपड़े पहन कर , मिष्ठान खा कर ही  इति श्री   करते हो  या उस दिन राग  द्वेष घटाते हो या  उन्हें  बढ़ाते हो ?
  • मैं मंदिर में ही रहता हूँ ,आपकी दुकान ,कार्यस्थल और घर में क्यों नहीं रहता हूँ ?
  • मेरे नाम पर इतनी दुकानें ,संस्थान ,कार्यालय है वहाँ  सच्चाई ,अहिंसा,सादगी   की  कमी नहीं   है ?
  • स्याद्वाद के अनुयायी आपस में पंथ,गच्छ के नाम पर कैसे लड़ लेते हो ?
  • जैनियों ,दहेज लेते वक्त,बेटी बेचते वक्त मेरे को भूल क्यों जाते हो ?
  • शादी आदि उत्सव  में आडंबर और प्रदर्शन क्यों बढ़ते जा रहे है ?
  • भ्रष्टाचार, प्रदूषण ,गंदगी करते वक्त महावीर को क्यों भूल जाते हो ?

 यह उत्तर किसी और को  नहीं  देना  हैं l इन का उत्तर  स्वयं को अपने मन  में   खोजना चाहिए ? ये महावीर के प्रश्न हमें जगाने के लिए , अपने आत्म अवलोकन के लिए है ,किसी को चोट पहुंचाने हेतु नहीं है l

स्वयं को समझने जीवन ऊर्जा,उसकी आवृत्ति व कम्पन्न को समझना होगा : विज्ञान एवं अध्यात्म

Nikola Tesla,the great inventorविगत सदी के महानतम वैज्ञानिक  जिन्होंने

ऐ .सी विधुत को खोजा  निकोला  टेस्ला ने लिखा हे की यदि आप  ब्रह्माण्ड के रहस्य को पाना चाहते हो तो आपको ऊर्जा , आवर्त्ति (frequency) व कम्पन्न ( vibrations) की भाषा में  सोचना होगा l  अथार्त  हमें    स्वयं को जानने ऊर्जा , आवर्त्ति व कम्पन्न को  समझना होगा l

क्या यही अध्यात्म नहीं है ?अध्यात्म को पूरी तरह जानने-समझने की कुंजी भी यही है ,ऋषि भी इसी  तरह महान वैज्ञानिक ही तो थे lस्वयं को पाने या मुक्त होने का मार्ग यही तो है l

. अगर आप अपने शरीर, मन, और भावनाओं को खुला रखते हैं तो आपका जीवन काफी अच्छा हो जाएगा। अगर आप अपनी ऊर्जा प्रणाली को खोलते हैं तो यह जादुई हो जाएगा।

क्षमा कर तनाव मुक्त होएं

मा कीजिए, मेहरबान,

आज क्षमा वाणी का पर्व है। जैन दर्शन का यह एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त हैं। जैन धर्म में क्षमा का बडा महत्व बताया है। पर्युषण पर्व की समाप्ति पर जैनी परस्पर क्षमा मांगते है।लेकिन आज यह एक रस्म अदायगी बन गया है। क्षमा माॅगने के क्रम में भी हम लोग पाखण्ड बढाते जा रहे है।  मैं मन ,वचन, काया से किये गये ंअपनी गलतियों व भूलों के लिए आप सब से क्षमा मागंता हुॅ।यह में एक कर्मकाड की तरह औपचारिकता भर निभा रहा हुॅ।इसी बहाने  क्षमा पर विवेचना भी कर रहा हुॅ । Forgive us
भगवान महावीर ने  क्षमा वीरस्य भूषणम कहा है। जैसा कि क्षमा एक व्यवहार ुशलता ही नहीं बल्कि एक सद्गुण भी है। क्षमा एक धर्म भी है। क्षमा कर आप बड़प्पन दिखाते है एवं स्वयं के लिए शान्ति खरीदते है। क्षमा करने में कोई धन नहीं लगता है। क्षमा भविष्य के संबंधो का द्वार है इसी से संबंध बनते है। क्षमा करने वालो को पछताने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
क्षमा करने की आदत होनी चाहिये। दिल से माफ करना चाहिए व दिल से क्षमा मांगनी चाहिए। जब आप शब्दो से क्षमा मांगते है  वह मात्र 10 प्रतिशत है, आॅखों से क्षमा मांगना 20 प्रतिशत है, दिमाग से मांगना 30 प्रतिशत है एवं 40 प्रतिशत मांगना दिल से होता है। सामने वाला व्यक्ति आपकी देह भाषा को पढ़ लेता है। इसलिए क्षमा मन, वचन एवं कर्म से मांगनी चाहिए। मात्र शब्दों से क्षमा न मांगे। दूसरों को माफ कर आप अपने तनावों का मिटाते हैं। स्वयं पर उपकार करते है।
स्वयं को क्षमा करना सबसे बड़ी व पहली क्षमा है। माफी से माफ करने वाला भी हलका होता है।उसे लगता है जैसे क्षमा करने से उसके सिर से बोझ उतर गया है। क्षमा करनें में दूसरा व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण नहीं है। क्षमा आप अपने से प्रारम्भ करें व सबको क्षमा करें। तभी तों किसी नें ठिक ही कहा है कि दुश्मन के लिए भट्टी इतनी गरम न करे कि आप भी उसमें जलने लगे।
कुछ लोग क्षमा को कमजोरों का हथियार मानते है। क्षमा करने से दुर्जनों को बल मिलता है ऐसा कहते है। क्षमा करना दण्ड व्यवस्था के विपरीत है। स्वाभिमान भी जैसे के साथ तैसा व्यवहार करने को कहता है। मेरे मन का एक अंश क्षमा के विरूद्ध है। मुझे भी तो सभी क्षमा नहीं करते फिर मैं क्यों माफ करूं। मुझे माफ करने में मुझे मूर्खता, बेवकूफी, दुश्मनों का प्रोत्साहन देने जैसा लगता है। उपरोक्त तर्क में दम कम है। लेकिन तर्को की अपनी सीमा है। तर्क हमेशा सत्य पर नहीं ले जाते है।
यदि मैं दिल से क्षमा नहीं मांगता हूं तो मुझे भी क्षमा नहीं मिलती है। प्रकृति या आत्मा या मन एक कल्पवृक्ष है। हम सब यहां जैसा जितनी गहराई से मांगते हैं वैसा ही परिणाम पाते है। इसलिए दिल से क्षमा मांगना जरूरी है। मांफी मांगने के पूर्व स्वयं के मन की एकरूपता, सच्चाई व पूर्णतया आवश्यक है।
भगवान बुद्ध अपने पर थूंकने वाले को क्षमा कर देते है। भगवान महावीर चण्डकोशिक को काटने पर क्षमा कर देते है। भगवान ईसा ने तो स्वयं को सूली पर चढ़ाने वालों के लिए कहा था ‘‘हे प्रभु! इन्हें क्षमा करना ये नहीं जानते हैं कि ये क्या कर रहें है।’’ ईसाई धर्म में भी क्षमा हेतु चर्च में एक कक्ष होता है जहां जाकर व्यक्ति अपने कृत्यों पर प्रभु से क्षमा मांगता है।

मैंने  अपनी तरह से सबकों तहे दिल से माफ कर दिया है। मैंने स्वयं को भी बक्श दिया है। क्या आप मुझे माफ करेगें ? क्या आप मुझे माफ कर सकतें है ?

उत्तम क्षमा, सबको क्षमा, सबसे क्षमा

कब तक गलतियों व क्षमा का क्रम चलेगा ?

प्रिय आत्मन,

 

kshama-yachna

मुझसे गलतियां हुई है। मेरी चुकें बढी है, व्यवहार में रूखा हूं, आपके प्रति कुछ अप्रिय कहा है एवं किया है। इसका खेद है। औपचारिक क्षमा नहीं, दिल पर हाथ रख कर क्षमा चाहता हूं।

अपनें अन्तर में झांकनें पर भूले स्पष्ट दिखती है, जिसकी सजा भी आप दे सकतें हो।

एक प्रश्न मन में आता है कब तक यह क्रम गलतिया करना व क्षमा मांगता रहूगा?

क्षमा प्रार्थी

जयन्ती-मीना जैन

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तनावमुक्ति का, सफल होने का उपाय : क्षमा करना

 

वीरेन्द्रकुमार जैन रचित प्रसिद्ध उपन्यास अनुत्तर योगी तीर्थंकर महावीर :समापन भाग

श्रेणिक, चेतना, चन्दनबाला, गोलक के चरित्र उज्जवल है । यथार्थवादी एवं अपनी भूमिका पूरे व सधे हुए हैं । कई बार महावीर वामणीय लगते हैं । आत्म जगत का पुरूषोतम हमारी समझ/पकड़ के बाहर रह जाता है ।
महाजनपद कालीन भारत में व्याप्त समस्त चितंन को समग्रता में लिखा है । वेद-अवेद, जैन-बौद्ध समस्त दर्शनों को महावीर के इस चरित्र को उत्कीर्ण करने में प्रयोग हुआ है । इन सबके बीच पुरूषोत्तम महावीर आगे बढ़ते चले जाते हैं ।
जैन धर्म में वर्णित अलौकिक घटनाएं महावीर के जीवन में वैसी ही स्वीकारी है । तब यह उपन्यास अतिशयोक्त लगता है । चमत्कार, अतिशय आदि का समावेश यद्यपि साकार प्रतीत होता है । महावीर कहीं भी कभी भी सामान्यजन नहीं लगते हैं सदैव पुरूषोत्तम की तरह सोचते हैं ।
यह एक सच्चे अर्थाें में भारतीय वीरासत है । महावीर अपनी यात्रा के क्रम सिी को कम नहीं बताते । सभी श्रेष्ठताओ को उघाड़ते जाते हैं । भारतीय ऋषियों द्वारा आत्म-यात्रा की पूरी गाथा इसमें है ।
जैनांे द्वारा सर्वज्ञता मानने से महावीर सदा ’’तीर्थंकर‘‘ की तरह व्यवहार करते हैं । उनकी सोच पूर्वजन्म से स्म्रण होने से सदैव हम से भिन्न है । वे किसी भी पार्थिव सुख को नहीं चाहते हैं न मानते है । वे सदैव कालातीत सुख की खोज करते बताए गए हैं । अतः पाठक महावीर में अपने को नहीं देख पाता है । महावीर साधना काल में किसी गुरू, आश्रम में जाते हैं या नहीं, पता नहीं लगता । उपन्यास में उपमाओं व अलंकारांे की बहुतायत है ।
वैसे पूरी जीवनी मनोवैज्ञानिक तलाश है । मन की स्थिति, स्वभाव, प्रकृति क अनुसार आगे बढ़ती है । साथ ही आत्मज्ञान ही सर्वज्ञान है । इसका मनोविज्ञान इसमे देखा जा सकता है । यहां तक की जैन मान्यताओं तक का मनोविज्ञान
प्रसिद्ध कवि-कथाकार और मौलिक चिन्तक वीरेन्द्रकुमार जैन ने अपने पारदर्शी विज़न-वातायन पर सीधी-सीधे महावीर का अन्तःसाक्षात्कार करके उन्हे निसर्ग विश्वपुरूष के रूप में निर्मित किया है । हजारों वर्षों के भारतीय पुराण-इतिहास, धर्म, संस्कृति, दर्शन, अध्यात्म का गम्भीर एवं तलस्पर्शी मन्थन करके कृतिकार ने यहां इतिहास के पट पर महावीर को जीवन्त और ज्वलन्त रूप् में अंकित किया है ।
वीरेन्द्रकुमार जैन अन्तश्चेतना के बेचैन अन्वेषी, प्रसिद्ध कवि-कथाकार एवं मौलिक चिन्तक हैं। लेखक एक प्रसिद्ध साहित्यकार है। जिन्होने योगी की तरह जीवन जीकर इसको लिखा है । भाषा पर इनका पूरा आधिपत्य है । अपने जीवन में अर्जित समस्त दर्शन,ज्ञान व अनुभव को इसमें समेटा है । जैन दर्शन को सर्वदर्शन का रूप दिया है। वर्ग विशेष के भगवान को सर्व का भगवान बनाया है । लेखक को इसे लिखने में 9 वर्ष लगे हैं ।
यह विश्व पुरूष महावीर पर श्रेष्ठ कृति है । इसकी पृष्ठभूमि विशाल एवं व्यापक है। इसमे लेखक ने महावीर को साम्प्रदायिक काराओं से मुक्त किया है । यह अपने आप में एक अनुपम एवं बेजोड़ रचना है । उक्त उपन्यास ईसा मसीह पर अंग्रजी में लिखा गया होता तो इसे नोबल पुरस्कार मिलता ।इसकी समीक्षा करते हुए कुबेरनाथ रामा ने इसे महाजन पद कालीन महाभारत कहा है ।

यह उपन्यास चार खण्डों में लिखा हुआ है । वैशाली का विद्रोही राजपुत्र, असिधारा पथ का यात्री, धर्म तीर्थ चक्र का प्रवर्तन एवं अनन्त पुरूष की जय यात्रा

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