श्रेणिक, चेतना, चन्दनबाला, गोलक के चरित्र उज्जवल है । यथार्थवादी एवं अपनी भूमिका पूरे व सधे हुए हैं । कई बार महावीर वामणीय लगते हैं । आत्म जगत का पुरूषोतम हमारी समझ/पकड़ के बाहर रह जाता है ।
महाजनपद कालीन भारत में व्याप्त समस्त चितंन को समग्रता में लिखा है । वेद-अवेद, जैन-बौद्ध समस्त दर्शनों को महावीर के इस चरित्र को उत्कीर्ण करने में प्रयोग हुआ है । इन सबके बीच पुरूषोत्तम महावीर आगे बढ़ते चले जाते हैं ।
जैन धर्म में वर्णित अलौकिक घटनाएं महावीर के जीवन में वैसी ही स्वीकारी है । तब यह उपन्यास अतिशयोक्त लगता है । चमत्कार, अतिशय आदि का समावेश यद्यपि साकार प्रतीत होता है । महावीर कहीं भी कभी भी सामान्यजन नहीं लगते हैं सदैव पुरूषोत्तम की तरह सोचते हैं ।
यह एक सच्चे अर्थाें में भारतीय वीरासत है । महावीर अपनी यात्रा के क्रम सिी को कम नहीं बताते । सभी श्रेष्ठताओ को उघाड़ते जाते हैं । भारतीय ऋषियों द्वारा आत्म-यात्रा की पूरी गाथा इसमें है ।
जैनांे द्वारा सर्वज्ञता मानने से महावीर सदा ’’तीर्थंकर‘‘ की तरह व्यवहार करते हैं । उनकी सोच पूर्वजन्म से स्म्रण होने से सदैव हम से भिन्न है । वे किसी भी पार्थिव सुख को नहीं चाहते हैं न मानते है । वे सदैव कालातीत सुख की खोज करते बताए गए हैं । अतः पाठक महावीर में अपने को नहीं देख पाता है । महावीर साधना काल में किसी गुरू, आश्रम में जाते हैं या नहीं, पता नहीं लगता । उपन्यास में उपमाओं व अलंकारांे की बहुतायत है ।
वैसे पूरी जीवनी मनोवैज्ञानिक तलाश है । मन की स्थिति, स्वभाव, प्रकृति क अनुसार आगे बढ़ती है । साथ ही आत्मज्ञान ही सर्वज्ञान है । इसका मनोविज्ञान इसमे देखा जा सकता है । यहां तक की जैन मान्यताओं तक का मनोविज्ञान
प्रसिद्ध कवि-कथाकार और मौलिक चिन्तक वीरेन्द्रकुमार जैन ने अपने पारदर्शी विज़न-वातायन पर सीधी-सीधे महावीर का अन्तःसाक्षात्कार करके उन्हे निसर्ग विश्वपुरूष के रूप में निर्मित किया है । हजारों वर्षों के भारतीय पुराण-इतिहास, धर्म, संस्कृति, दर्शन, अध्यात्म का गम्भीर एवं तलस्पर्शी मन्थन करके कृतिकार ने यहां इतिहास के पट पर महावीर को जीवन्त और ज्वलन्त रूप् में अंकित किया है ।
वीरेन्द्रकुमार जैन अन्तश्चेतना के बेचैन अन्वेषी, प्रसिद्ध कवि-कथाकार एवं मौलिक चिन्तक हैं। लेखक एक प्रसिद्ध साहित्यकार है। जिन्होने योगी की तरह जीवन जीकर इसको लिखा है । भाषा पर इनका पूरा आधिपत्य है । अपने जीवन में अर्जित समस्त दर्शन,ज्ञान व अनुभव को इसमें समेटा है । जैन दर्शन को सर्वदर्शन का रूप दिया है। वर्ग विशेष के भगवान को सर्व का भगवान बनाया है । लेखक को इसे लिखने में 9 वर्ष लगे हैं ।
यह विश्व पुरूष महावीर पर श्रेष्ठ कृति है । इसकी पृष्ठभूमि विशाल एवं व्यापक है। इसमे लेखक ने महावीर को साम्प्रदायिक काराओं से मुक्त किया है । यह अपने आप में एक अनुपम एवं बेजोड़ रचना है । उक्त उपन्यास ईसा मसीह पर अंग्रजी में लिखा गया होता तो इसे नोबल पुरस्कार मिलता ।इसकी समीक्षा करते हुए कुबेरनाथ रामा ने इसे महाजन पद कालीन महाभारत कहा है ।
यह उपन्यास चार खण्डों में लिखा हुआ है । वैशाली का विद्रोही राजपुत्र, असिधारा पथ का यात्री, धर्म तीर्थ चक्र का प्रवर्तन एवं अनन्त पुरूष की जय यात्रा
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