अपने मस्तिष्क के प्रति आभार ज्ञापन एवं संवाद

brainप्रिय मस्तिष्कजी ,
सादर प्रणाम !
आपने इस देह का नेतृत्व किया है इसलिए आपका बहुत आभारी हूँ l आप ही संचालक है ,विचारों के जन्मदाता ही नहीं भावों के भी रचेता हैl आप अपना उत्तर दायित्व अच्छे से निभा रहे है l आपकी जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन वरीयताओं का चयन ठीक तरह से नहीं करने के कारण हम आपको भूल गये ,इस हेतु क्षमा चाहते है l
आप ज्ञान ,समझ एवं बुद्धि के भंडार है l शरीर में सम्वाद ,स्नायु तंत्र एवं समस्त अंगो में सामंजस्य आपसे ही होता है l शरीर में समन्वय और नियन्त्रण आपका ही है l
हमने आपको विचारों से ,विश्वासों से ,परिणामों की लालसा से ,चाहतों से भर रखा है ,कभी निर्विचार नहीं होने दिया l नीरव, शान्त नहीं होने देते हैंl क्रोध,कामना ,बदले की भाव, ईर्ष्या,तुलना में पड़ कर आपको विकृत किया है l आपको आपकी लय में नहीं रहने दिया है l मैंने आप पर सदैव अनावश्यक भार डाला है ,सदैव आपको व्यस्त रखा है ,आपको अनेक तरह से तंग किया है l आपको विश्राम नहीं करने दिया है फिर भी आप यथायोग्य अपनी सेवाए निरंतर जन्म से अभी तक देते आ रहे हैl
मेरी बड़ी समस्या चंचलता की है ,अविश्वास की है ,निरंतर खोजने की आदत की है ,जिस कारण में कहीं ठहर नहीं पाता हूँ l अधैर्य ने अशांत बना दिया हैं l
सुखासन,सिद्धासन ,शवासन, भ्रामरी प्राणायाम, नादानुसंधान ,योग निद्रा,ज्ञान मुद्रा,प्रार्थना एवं ज्ञान योग से आप शांत होते है ,राग – द्वेष से आप अव्यवस्थित होते है l क्रोध ,वासना एवं डर से आप की व्यवस्था बिगडती है l क्षमा से विचारो की शुद्धि होती है l आपको जागृत कर शुभता की और मुड़ा जा सकता है l
सारी विपरीत स्थिति के उपरान्त आपका सहयोग मुझे हर तरह से हर रूप में मिला है ,इसके लिए आपको शरीर की एक एक कोषिका की तरफ से धन्यवाद l
ॐ शांति शांति शांति :
आपका अपना
———-
(अपना नाम )

इस पत्र को आप अपने भावों के,आपके विचारों ,स्थिति के अनुसार बदल कर अपने हेतु लिखे फिर उसका चमत्कार देखें l
मस्तिष्क पर दोनों हाथ रख कर पत्र को भाव से पढ़े , गहन श्वशन लेते हुए उसे सहलाते रहे l शांति से उसकी बात महसूस करें –यह भाव,चित्र ,आभास या शब्द के रूप में हो सकते है l

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं, है अपना ये त्यौहार नहीं।- महाकवि दिनकर

नव वर्षराष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा अंग्रेजी नववर्ष पर रचित एक प्रेरणादायक कविता*

*ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,*
है अपना ये त्यौहार नहीं।
है अपनी ये तो रीत नहीं,
है अपना ये व्यवहार नहीं।

धरा ठिठुरती है सर्दी से,
आकाश में कोहरा गहरा है।
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर,
सर्द हवा का पहरा है।

सूना है प्रकृति का आँगन,
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं।
हर कोई है घर में दुबका हुआ,
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं।

चंद मास अभी इंतज़ार करो,
निज मन में तनिक विचार करो।
नये साल नया कुछ हो तो सही,
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही।

उल्लास मंद है जन -मन का,
आयी है अभी बहार नहीं।
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,
है अपना ये त्यौहार नहीं।

ये धुंध कुहासा छंटने दो,
रातों का राज्य सिमटने दो।
प्रकृति का रूप निखरने दो,
फागुन का रंग बिखरने दो।

प्रकृति दुल्हन का रूप धार,
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी।
शस्य – श्यामला धरती माता,
घर -घर खुशहाली लायेगी।

तब *चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि*,
*नव वर्ष मनाया जायेगा।*
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर,
जय गान सुनाया जायेगा।

युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध,
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध।
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा,
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।

अनमोल विरासत के धनिकों को,
चाहिये कोई उधार नहीं।

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,
है अपना ये त्यौहार नहीं।
है अपनी ये तो रीत नहीं,
है अपना ये त्यौहार नहीं।

भुट्टे के बाल पथरी, मूत्र संक्रमण,प्रोस्ट्रेट एवं गुर्दों के रोग निवारण में सहायक

भुट्टे में विटामिन A,B और E, मिनरल्स और कैल्शियम काफी मात्रा में पाई जाती हैl आयुर्वेद के अनुसार भुट्टा तृप्तिदायक, वातकारक, कफ, पित्तनाशक, मधुर और रुचि उत्पादक अनाज है। भुट्टे के बाल का काढ़ा पथरी, मूत्र संक्रमण,प्रोस्ट्रेट एवं गुर्दों के रोग निवारण में सहायक है lप्रोस्टेट के कारण मूत्र मार्ग में होने वाली बाधा भी पूरी तरह ठीक हो जाती है इससे प्रोस्ट्रेट का ओपरेशन नहीं कराना पड़ता है l भुट्टे के बालों को रात भर भिगो कर प्रात: उबाल कर छान कर पिने पर बहुत लाभ होता है l स्वाद हेतु निम्बू का रस डालेl  एक सप्ताह में ही परिवर्तन महसूस कर सकते है l

योग दिवस: यौगिक जीवन शैली अपनाएं जो की सनातन राष्ट्रीय संस्कृति है

 

 

 

 

 

 

अंतर राष्ट्रीय योग दिवस अर्थात यौगिक जीवन शैली जीने की याद कराने हेतु है l योग का अर्थ मात्र आसन करना नहीं,शारीरिक अभ्यास मात्र करना नहीं है l यह दिन अपने जीवन को शुभ , स्वास्थ्य वर्धक एवं कल्याणकारी बनाने के लिए है l
योग एक जीवन दर्शन है उसके अनुसार जीना हैl पूरी दिनचर्या योग के अनुसार संतुलित और व्यवस्थित करना है:
• आसन, प्राणायाम, व्यायाम, ध्यान आदि के अभ्यास को नियमित बनाने का प्रयास कीजिये जिससे स्वस्थ्य रहे ताकि शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेl
• दिन भर गहन श्वशन लेना है ,अपने श्वास के प्रति सजग रहना है l
• हमारा भोजन योग अनुसार हो अर्थात सादा एवं प्राकृतिक होl
• विचार संयत हो, संतोष दायक एवं सकारात्मक हो l
• कर्म कौशलता पूर्ण हो- जो भी कार्य करे सौ प्रतिशत तन्मयता से करे l
• नीद गहरी लेने हेतु योग निद्रा l
• दिन भर प्रसन्न रहे व दूसरो को प्रसन्न रखे l
• सप्ताह में एक दिन डिजिटल उपवास रखिए l डिजिटल आहार त्यागिए यानि फोन,लेपटॉप,इन्टरनेट ,सोशल मिडिया से दूर रहना है l
• प्रकृति के साथ समरसता में जीना है ,सभी पड़ोसियों से बात करिये ,पेड़ पौधों के साथ रहिए l
इस तरह जीवन में एक आध्यात्मिक संस्कृति का विकास करना l

योग एकता ,सामंजस्य और सहयोग का प्रतीक है,हमें इस तरह जीना है कि पहले यह भाव स्वय: के प्रति फिर परिवार एवं समाज के प्रति व्यक्त होl योग मानवता के लिए सबसे अनमोल उपहार है, यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना हजारों वर्ष पूर्व था। हमारी यही सनातन जीवन विज्ञान है lउपरोक्त प्रसंग सम्बन्धित सहायता हेतु जयन्ती से jayntijain@gmail.com पर सम्पर्क करें l
                                                                              ( आभार – बिहार योग विधालय )

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