अपच पर घरेलू नुस्खे

दूध ना पचे तो – सोंफ
• दही ना पचे तो – सोंठ
• छाछ ना पचे तो – जीरा व काली मिर्च
• अरबी व मूली ना पचे तो – अजवायन
• कड़ी ना पचे तो – कड़ी पत्ता
• तेल, घी, ना पचे तो – कलौंजी
• पनीर ना पचे तो – भुना जीरा
• भोजन ना पचे तो – गर्म जल
• केला ना पचे तो – इलायची
• ख़रबूज़ा ना पचे तो – मिश्री का उपयोग करें
जयन्ती जैन ,9414289437
Swasthyasetu,Udaipur

मूत्र समस्या,जलन ,बार बार पेशाब आना,प्रोस्ट्रेट समस्या का अनुभूत देशी इलाज

उम्र बढ्ने के साथ मूत्र नियंत्रण की समस्या कई कारणों से बढ़ जाती है l  इसका  इलाज आयुर्वेद में अच्छी तरह से बताया है l

 सौंफ ,अजवाइन ,जीरा,धनिया ,मेथीदाना ,मुलेठी इन सभी को साबुत  4 -4 ग्राम लेकर  साँय काल  गिलोय के साथ  गरम  पानी में भिगो दे l सुबह खाली पेट छान कर  इसे पीए l

मूत्र विसर्जन करते  वक्त मुँह से जीभ को गोल कर श्वास ले एवं मुँह से ही श्वास ज़ोर से छोड़े जैसे फूँक मार रहे हो ,मुँह का प्राणायाम करें ,इससे भी मदद मिलेगी l

( आभार: सी पी भट्ट साब )

भारत के अधःपतन में धर्म का कोई हाथ नहीं हैं

 स्वामी विवेकानंद ने सही कहा हैं कि भारत के अधःपतन में धर्म का कोई हाथ नहीं हैं बल्कि पाखंड , कर्म कांड,विवेक शून्यता  और अधर्म ने भारत को डुबाया l धर्म को सही  स्वरूप में नहीं समझने के कारण भारत डूबा ,इसलिए इसका दोष धर्म नहीं अनुयायियों का हैं lउसके लिए पथ नहीं, पथिक दोषी  हैं l

   वामपंथियो  और सनातन विरोधियों ने बड़ी कुशलता के साथ यह नरेटिव,झूठी कहानी  गढी कि कर्मकांड एवं सतही  क्रियाएँ ही धर्म हैंl जबकि धर्म अस्तित्वगत स्वभाव को कहते हैं  एवं वह गूढ  रूप से मूल  कर्तव्य होता हैं lकार्ल मार्क्स और आधुनिक  सोच ने धर्म को अफीम बता कर हमें बताया कि धर्म के कारण हम भटक गये, जबकि धर्म को सही रूप में नहीं जानने के कारण अंधेरा फैला है l

धर्म तो जीने की कला हैं l कर्मकांड ,अंधविश्वास ,पाखंडवाद ,पलायनवाद ,सरल रास्ता चुनने की वृत्ति ,अहंकार ,अविध्या ने सहज कृत्यों को विकृत कर दिया lइससे सनातन धर्म पतित नहीं हुआ बल्कि इसके अनुयाई पतित होकर सत्य धर्म को समझ न सके  और अंधेरे में भटकते  रहे,इसके लिए धर्म दोषी नहीं हैं lहमने अपनी वासना पूर्ति ,अहंकार को पूरा करने ,अपनी कमजोरी को ढकने धर्म का सहारा लेते रहे ,भला इससे धर्म कैसे गलत हो गया l

 हम लोगों के सारी समस्याओ  की जड़ में एक चीज है जोकि है सांसारिकता, यज्ञ को भोग में बदल दिया  l प्रत्येक कर्म को निष्प्राण कर दिया lकर्म को समझे बिना  लकीर पीटने लगे l  जैसे देव दर्शन एक आदत बनने पर उसमें उसके प्राण निकल जाते है l  प्रक्रिया बिना भाव के  दुहराते रहने से  साथ कर्म कांड हो गई ,उसमे प्रदर्शन और जुड़ गया l  किसी भी कर्म को दोहराते रहने से उसमे विषाक्तता  आ जाती,काम चलाऊ हो जाता है ,सामाजिकता  नए प्रपंच खड़े कर देती   l कर्म प्रदर्शन का  साधन बन जाता ,निपटाने की वृति आ जाती ,जिससे उसमे निहित सत्य ख़तम हो जाता ,प्राण का दम घूंट जाता है l वह एक औपचारिताकता बन जाता है ,उससे कोई लाभ नहीं होता बल्कि  उल्टी हानि होती l  धर्म करने का भ्रम बढ़ता ,अहं बढ़ता l सीढी ऊपर चढ़ने हेतु थी लेकिन हम नीचे ही उतरते रहे l

हम सबको वाल्मीकिय रामायण एकबार अवश्य क्यों पढना चाहिए ?

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वेद,उपनिषद ,पुराण को पढना और समझना मुश्किल कार्य हैंl इसलिए वाल्मीकि जी ने इसको पहली बार कहानी के रूप में सरलीकृत रूप से प्रस्तुत किया l बाल बुद्धि हेतु एक मन भावन कहानी है जिसमें फेंटेसी हैं, राजा रानी हैं ,वचन बद्धता है ,रनिवास का षड्यंत्र है, त्याग है, लड़ाई है , आदर्श है ,प्रेम त्रिकोण है, अपहरण है ,सत्य है, झूठ है ,अविश्वास है, बंदर भालू है ,भाइयों का प्रेम है,आगजनी है, हत्याएँ है, प्रतिशोध हैl
परिपक्व मन से देखे तो इस कहानी में सनातन संस्कृति का प्रारूप एवं निचोड़ इसमें हैं l वैदिक आचरण ,संस्कार एवं चरित्र को इसमें बहुत अच्छी तरह से निरुपित किया हुआ है l सभी तरह के रीती रिवाजों का इसमें वर्णन हैं l व्यक्ति की दिनचर्या की रूप रेखा है , व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति हेतु क्या ,कैसे एवं कब करने का विस्तृत वर्णन इसमें हैं lतप स्वाध्याय का मार्ग अप्रत्यक्ष रूप से निरुपित है l
पंचतंत्र पढना बचपन में जैसे बहुत से दरवाजे खोलता है वैसे ही वाल्मीकीय रामायण भी हमारे जीवन के द्वार खोलता है l इसकी कहानी हमारे मन की कहानी है यह हमारी सोच को दर्शाती हैl इसको पढने से हमारे मन की ग्रन्थियाँ सुलझती है ,विकार नष्ट होते है और भावों को नई दिशा मिलती है l हमारा मन इसके पात्रों के जैसा सोचता और हम वैसा करते है lअर्थात अशांत ह्रदय एव द्वंदरत मन को सुलझाता है l मानसिक रूप से मन को स्वस्थ बनाता है l
वाल्मीकिय रामायण एक शास्त्र है उसमे पुरुषार्थ प्राप्ति का मार्ग है l धर्म पूर्वक जीवन जीने के लिए सामाजिक मर्यादाओं का पालन कैसे ,कब एवं कितना करना का उदाहरण है l परिजनों से कैसे व्यवहार करना, साधुओं से कैसे व्यवहार करना आदि का उदाहरण है l राजा के कर्त्तव्य,प्रजा का दायित्व भी दिया हुआ हैं l काम की प्राप्ति का धर्म मार्ग क्या है ,इसमें कहाँ पर लगाम लगानी है आदि बताया हुआ है l न्यायपूर्वक अर्थ किस तरह कमाना , बचत कितनी करना ,राज्य को कर कितना लगाना चाहिए आदि का भी वर्णन है l इसमें सभी तरह के आदर्श का मानक दिखाए हुए है,ताकि हम जो कर रहे है उसको दर्पण में देख सके l क्या सही है ,क्या होना चाहिए का स्पष्ट सी रुपरेखा दिखती हैl कह सकते है कि यह जीने की आचार संहिता हैं l

यह आदि काव्य है l वाल्मीकिय रामायण प्रथम है , शुद्ध है ,लिखने वाला समसामयिक है एवं स्वयं उसका हिस्सा है l वह सभी पात्रों को शुद्ध मानव रूप में देखता l सभी मानवीय व्यवहार करते है l यह मानव मनोविज्ञान का दर्पण हैंl इसके सभी पात्र क्रिया कोई चमत्कार नही करते बल्कि सहज प्रतिक्रिया करते है l करुणा रस से भरा होने के साथ इसमें अन्य सारे रस भी हैं l
भारतीय धर्मप्राण जनमानस में कर्म, आदर्श और धर्म की समन्वित त्रिवेणी प्रवाहित कर देने वाली ‘रामायण’ सम्पूर्ण लौकिक संस्कृत साहित्य की आदिकाव्य कही जाती है, और इसके रचयिता ‘वाल्मीकि’ आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं।

वाल्मीकि रामायण में वैदिक संस्कृति को समझने के रहस्य छुपे हुए हैं।दैनिक ,नेमेत्तिक ,काम्य एवं प्रायश्चित कर्म करना ,कुलधर्म (परम्परागत पूजा विधि )का वर्णन इसमें स्पष्टत: वर्णित है l इसमें उपदेश द्वारा नहीं ,जीवंत उदाहरण द्वारा बताया गया है l

यह सरल संस्कृतमें लिखी हुई है, कोई भी भारतीय भाषा का जानकार आसानी से इसे समझ सकता हैं l इसका जोर से उच्चारण करने या गाने पर इसके भाव स्वत: मन में प्रकट होते है l इसका काव्य भी रस प्रधान एवं गाने योग्य हैं l आदि कवि की महान रचना है इसके अलंकारों का सुंदर प्रयोग है l कवि का वर्णन सटिक,प्रसंग अनुसार एवं स्थिति अनुरूप है l भाव एवं काव्य का सौन्दर्य अप्रतिम हैं l
सत्य ही धर्म है ,कर्त्तव्य ही सत्य है ,सत्य ही सुखी होने का मार्ग है l सत्य से विमुख होना ही अधर्म ,पाप एवं दुःख का हेतु हैं l सत्य ही सबका मूल है और सत्य से बढकर कुछ भी नही है। असत्य के समान पातक पुंज नहीं है। समस्त सत्य कर्मों का आधार सत्य ही है।
किसी वादे को तोड़ने से आपके सारे अच्छे कर्म नष्ट हो जाते हैं।प्रतिज्ञा का महत्व इसमे बताया हुआ है lसंघर्ष से आप महान बन सकते है। आगे बढ़ना है तो संघर्ष जरूरी है।रावण से लड़ना जरूरी है l इससे आप भाग नहीं सकते है lहोनी के प्रति दुःख मनाना कायरता और अज्ञान है।
राम का संघर्ष सीखाता है कि विश्वास की शक्ति जगा कर हम दुसरो से मदद प्राप्त कर सकते हैं l मन को शांत कर राम और लक्ष्मन बिना अपने राजपरिवार के स्रोत के सीता की खोज करके उसे प्राप्त करते हैं l हमारे दृश्य स्रोत के अतिरिक्त भी कोई हमारी मदद करता है जिसे देव ,भगवान, अस्तित्व कहते है ,जो सदैव हमे उपलब्ध होती है lअनजान सुगीव,जाम्बवन्त और हनुमान अपनी सेनाओं के साथ मिलते हैं और राम को विजय मिलती हैं l अधर्म पर धर्म की जय होती हैं l
आदर्श गृहस्थ धर्म कि रूपरेखा स्पष्टरूप से पहली बार इसमे निरूपित हुई हैं l
(आभार स्वामी समर्पणानन्द ,राम कृष्ण मिशन )

मधुमेह की  एलोपैथीक दवा लम्बे  लम्बे समय तक लेने से होने वाली हानि को कैसे रोकना ?

निम्न दो दवा लेने से मधुमेह से उत्पन्न जटिलताओं से होने वाली हानि जैसे की  आँख ,ह्रदय,गुर्दे ,लीवर  आदि  ख़राब  नहीं होंगे l

1 बसंत कुसमाकर रस

यह एक आयुर्वेदिक औषधि हैं l इस दवा कार्डियोप्रोटेक्टिव, एंटी-डायबिटिक और एंटी-हाइपरग्लाइसेमिक गुण इसे मधुमेह टाइपहाई 1 और 2 को ठीक करने के लिए उपयुक्त बनाते हैं क्योंकि यह ब्लड शुगर के स्तर को सामान्य और स्थिर करता है। निम्न लाभ है –

  • मेमोरी लॉस (मधुमेह में)
  • नोक्टुरिया (रात में एक बार या ज्यादा बार पेशाब के लिए जागना)
  • अनिद्रा
  • सांस लेने में तकलीफ, थकान, दिल की बीमारियां जैसे जेरियाटिक विकार (बड़े लोगों के लिए जटिलताएं)
  • हीमोफिलिया (विरसत में मिला रक्तस्राव का विकार)
  • कायाकल्प और एंटी-एजिंग दवा
  • मांसपेशियों को शक्ति देती है और वजन बढ़ाने में मदद करती है।

कैसे लेना ?

एक गोली भोजन के बाद ,दोनों समय लेl  दूध और अनरिफाइंड चीनी,शहद , दूध की मलाई या मक्खन के साथ साथ ली जाती है। लेकिन इसे 4 सप्ताह तक ही उपयोग किया जा सकता है।

2 अल्फा लिपोलिक एसिड   

अल्फा लिपोइक एसिड, फ्री रैडिकल (ऊर्जा उत्पादन के दौरान शरीर में बनने वाला बेकार उत्पाद) जैसे प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन और नाइट्रोजन प्रजातियों को निष्क्रिय करके एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट (वह पदार्थ जो कोशिका को नष्ट होने से बचाता है) की तरह काम करता है। इसके अतिरिक्त, यह शरीर में प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट प्रक्रियाओं को शुरू करता है। यह शरीर में विटामिन ई और विटामिन सी के स्तर को भी बनाए रखता है।अल्फा लिपोएक एसिड मुख्य रूप से कई प्रकार की चिकित्सा स्थितियों जैसे कि टाइप 2 डायबिटीज, नर्व समस्याओं, स्मृति हानि , लिवर की समस्याओं, कैंसरलाइम रोग और हृदय और रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने वाले रोगों के उपचार में निर्धारित है।

यह शरीर में मौजूद कार्बोहाइड्रेट को भी प्रभावी रूप से तोड़ता है और इसे उपयोगी ऊर्जा में परिवर्तित करता है।

जबकि दवा के कुछ लाभ हैं, लेकिन इसे थोड़ी सावधानी के साथ लिया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, जो महिलाएं बच्चे या नर्सिंग की उम्मीद कर रही हैं, उन्हें अल्फा लिपोएक एसिड के साथ इलाज करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। दवा में रक्त में शुगर के स्तर को कम करने की प्रवृत्ति होती है, इस प्रकार डायबिटीज वाले लोगों को दवा के उपयोग के निहितार्थ पर चर्चा करनी होगी और तदनुसार अपनी खुराक में बदलाव करना होगा।

जो मरीज अल्फा लिपोएक एसिड ले रहे हैं, उन्हें शराब के सेवन से बचना चाहिएl

  • खाना खाने से 1 घंटा पहले और या 2 घंटे बाद खाली पेट में इसे लेना चाहिए।

Disclaimer : बसंत कुसमाकर रस और अल्फा लिपोइक एसिड सप्लिमेंट खुद से मधुमेह, मधुमेह की जटिलताओं तथा अन्य स्थितियों के लिए एकल उपचार के रूप में न लेंl इनके लेने से दवा लेने से होने वाली हानि कम  होती  है, क्योंकि इन बीमारियों के लिए उचित चिकित्सीय इलाज की जरूरत होती है।

  सम्पर्क :मनोज कोठारी ,8949286171