मान लो की भगवान महावीर आज पुन: धरती पर आए,उनकी जयंती की बधाइयों को देख कर , हमारा जीवन शैली देख कर हमसे क्या क्या प्रश्न कर सकते है ?
क्या सचमुच तुम्हें मेरी (महावीर) की जरूरत है ?
जैन लिखने से ज्यादा जैन आचरण नहीं जरूरी है ?
क्या तुम मेरी बात मानते हो ? हाँ तो फिर मेरे सिद्धांतो को मानने की बजाय नाम का प्रदर्शन क्यों करते हो ?
मेरे जन्म पर पुजा करके ,जुलूस निकाल कर ,नारे लगा कर ,नए कपड़े पहन कर , मिष्ठान खा कर ही इति श्री करते हो या उस दिन राग द्वेष घटाते हो या उन्हें बढ़ाते हो ?
मैं मंदिर में ही रहता हूँ ,आपकी दुकान ,कार्यस्थल और घर में क्यों नहीं रहता हूँ ?
मेरे नाम पर इतनी दुकानें ,संस्थान ,कार्यालय है वहाँ सच्चाई ,अहिंसा,सादगी की कमी नहीं है ?
स्याद्वाद के अनुयायी आपस में पंथ,गच्छ के नाम पर कैसे लड़ लेते हो ?
जैनियों ,दहेज लेते वक्त,बेटी बेचते वक्त मेरे को भूल क्यों जाते हो ?
शादी आदि उत्सव में आडंबर और प्रदर्शन क्यों बढ़ते जा रहे है ?
भ्रष्टाचार, प्रदूषण ,गंदगी करते वक्त महावीर को क्यों भूल जाते हो ?
यह उत्तर किसी और को नहीं देना हैं l इन का उत्तर स्वयं को अपने मन में खोजना चाहिए ? ये महावीर के प्रश्न हमें जगाने के लिए , अपने आत्म अवलोकन के लिए है ,किसी को चोट पहुंचाने हेतु नहीं है l
किसी व्यक्ति को पहचानना हो, कोई नया काम शुरू करना हो, कोई बड़ा निर्णय लेना हो या किसी रोग से लड़ाई हो .. तब, ध्यान से सुने कि भीतर से क्या आवाज आती है. शुरू में आपकी बुद्धि और तर्क आड़े आएंगे किंतु धीरे-धीरे आप तर्क से परे उस परम वाणी को सुनने की सामर्थ्य पैदा कर लेंगे कि -‘अंदर से कुछ आवाज आ रही हैं ?’
जैसे किसी व्यक्ति का बीपी बढ़ा हुआ है या शुगर रीडिंग ज़्यादा आ रही हो लेकिन उसे फील अच्छी बनी हुई है. मसलन, गड़बड़ पैरामीटर्स के कोई लक्षण देह पर प्रत्यक्ष प्रकट नहीं है.. तो यकीन मानिए उसे अधिक घबराने की जरूरत नहीं है. उसकी समस्या दीर्घकालिक नहीं, तात्कालिक ही जानिए.’कैसा लगता है’ – यह अनुभव, हमारी स्थिति की आत्मगत खबर है और यह अक्सर सच निकलती है. लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि वह चिकित्सकीय परामर्श न ले. बस इतना ही है कि इत्मीनान रखे. खामख्वाह के किसी डर, वहम या फोबिया का शिकार न हो. अन्यथा वह स्ट्रेस में आकर अपनी स्थिति को और भी बदतर कर लेगा.
आपके बाबत, आपकी सबसे सच्ची और प्रामाणिक रिपोर्ट है- आपकी इनर वॉइस. ‘कैसा लगता है?’
अगर आपको लगता है कि आप ठीक हैं या ठीक हो जाएंगे तो सच मानिए कि आप ठीक ही हैं.
डॉक्टर के.के. अग्रवाल कहते थे – “ईलाज, रिपोर्ट का नहीं.. व्यक्ति का किया जाता है “
ठीक होने का एहसास हमारी क्वांटम फील्ड में बदलाव शुरू कर देता है.
चेतना, इंटेंशन पर काम करती है.चेतना का संकल्प, पदार्थ को रुपायित कर देता है.और यह इसलिए संभव है क्योंकि पदार्थ भी अंततः चेतना ही है.एक ही मिट्टी, हवा और धूप लेकर भिन्न-भिन्न रंग, रूप और गंध के फूल खिल उठते हैं.पौधे में अंतर्निहित यांत्रिकी, एक ही पदार्थ से अपने अनुकूल घटकों का निर्माण कर लेती है. हमारे भीतर दो तरह की बुद्धिमत्ता है एक -तर्क और अनुभव से अर्जित व्यक्तिगत बुद्धिमत्ता और दूसरी ब्रह्मांडीय प्रज्ञा.ब्रह्मांडीय प्रज्ञा, मानव शरीर या जगत के कॉन्स्टिट्यूएंट्स को अलग-अलग नहीं देखती. वह सोडियम, पोटेशियम मैग्नीशियम की भाषा नहीं जानती.उसे जो जरूरी लगता है वह उसका निर्माण, धूप, हवा और पानी से भी कर लेती है.
वह गेहूं के एक दाने से प्रोटीन भी बना सकती है, कार्बोहाइड्रेट भी, स्टार्च भी, फैट भी.
इस ब्रह्मांडीय प्रज्ञा पर भरोसा रखें.बहुत बार ऐसा भी हुआ है कि जिस लकवा ग्रस्त खिलाड़ी को आजीवन अपंग करार दिया गया था वह एक वर्ष बाद कोर्ट में खेलने आ गया. श्वसन तंत्र के कैंसर से जूझ कर आए व्यक्ति ने ऊँचे पहाड़ पर झंडा गाड़ दिया. क्यों ?
क्योंकि उन्होंने डॉक्टर्स की रिपोर्ट से अधिक अंदर से आने वाली आवाज को सुना जो कह रही थी ‘तुम ठीक हो जाओगे.’
दवाइयां सिर्फ सपोर्ट करती हैं.आपका शरीर ही आपका वास्तविक चिकित्सक है.हमारे शरीर की प्रत्येक सेल में विज़डम भी है, हीलिंग पावर भी.डॉक्टर के पर्चे को दरकिनार न करें किंतु उसे सपोर्टिव ट्रीटमेंट माने, प्रधान नहीं.प्रधान ट्रीटमेंट तो चेतना की आवाज का लिखा पर्चा ही है.
“इनर वॉइस” एक अंतर्भूत कॉस्मिक व्हिज्डम है, जो हमें मालूम और ना-मालूम, सभी जानकारियों को एक साथ एनालाइज कर, एक विश्वसनीय उत्तर देती है.इस उत्तर में हमारे कॉन्शस ज्ञान के अलावा आध्यात्मिक, अनुवांशिकीय, अवचेतन और संस्कारगत जानकारियों का डेटा भी समाविष्ट होता है.मगर यह प्रोसेसर इतना महीन है कि इस तक पहुँच, विचारों के बहुत बड़े जखीरे के साथ संभव नहीं है.मौन, समर्पित, प्रार्थनामय चित्त,सरल और संकल्पवान ह्रदय को यह इनर वॉइस बहुत साफ सुनाई देती है.इन सब बातों का यह अर्थ नही है कि हम अपनी रीज़निंग और मनुष्यता द्वारा अब तक अर्जित ज्ञान को बलाए ताक रख दें.किंतु तर्क के शोर में इतने भी बहरे न हो जाएं कि भीतर की आवाज को सुनने की क्षमता ही खो बैठें.
महाभारत से महारानी कुंती मेरी आदर्श हैl एक सजग,कर्त्तव्य परायण, बहादुर अद्भुत महिला जो विपत्ति को सौभाग्य में बदलती है l विपरीतता को वरदान बनाने की कला कुंती के पास थी l प्रत्येक स्थिति का समग्र मूल्यांकन कर अपनी उपलब्ध स्रोतों का अधिकतम दोहन कर अपने पक्ष में आशावादी तरीके से उपयोग कर धैर्य से सामना करती रही l
पिता शूरसेन द्वारा कुंतिभोज को गोद दे देना, अपने माता पिता को छोड़ दूसरे परिवार को स्वीकारना और अच्छे से जीना ,वहाँ कठोर अनुशासन प्रिय दुर्वासा ऋषि की सेवा कर उनसे संतान प्राप्ति का वरदान पाना ,कुमार अवस्था में कुतूहल वश उस वरदान का परीक्षण करने के क्रम में पुत्र को जन्म देना फिर उसे त्यागना और बाद में उस को पहचान कर भी उससे संपर्क नहीं रखना ,पति पांडु की मृत्यु पर माद्री के सती होने पर अपने एवं उसके बच्चों को पूरी ज़िम्मेदारी से संभालना , जंगल में पैदा हुए अपने पुत्रो को बड़ा कर दुर्योधन और शकुनि जैसों से लड़ कर द्रोणाचर्य से शिक्षा दिलाना ,फिर युधिष्टर को युवराज बनवाना ,लाक्षा गृह से बच कर द्रोपदी को स्वयंवर मे जितवाना ,ध्युत में हारने पर वनवास के समय राजमहल छोड़ विदुर के पास रहना, कुन्ती ने राज्य छिन जाने, जुए में हारने, अपने पुत्र कर्ण के अपमान को, कुलशील बहू द्रौपदी के अपमान को झेलने का कष्ट सहा था । लोकनिन्दा के भय से उसने जन्मजात कवच और सोने का कुण्डल धारण किये हुए कर्ण को अन्त तक अपना पुत्र न कह पाने की पीड़ा भी झेली । कर्ण को अभिशप्त जीवन जीते देखकर इसी पीड़ा में आजीवन घुलती रही । कर्ण के समक्ष पांचों पाण्डवों की प्राणरक्षा की भीख मांगकर पुत्रों के प्रति अपने स्नेह को प्रकट किया । महाभारत विजय के बाद कृष्ण से दुख मांगना ताकि वह भगवान को याद करती रहे ,राज माता बने रहने की बजाय धृतराष्ट्र गांधारी के साथ उनकी सेवा हेतु उनके साथ वन को जाना l वनवास का कष्ट सहते हुए वैराग्य की साधना पूर्ण कर अपनी प्राणाहुति अग्नि देवता को समर्पित कर दी । आज के मूल्यों के परिपेक्ष में भी भले कुंती आदर्श महिला न लगती हो लेकिन वह एक संघर्षशील व्यक्तित्व की धनी थी हम उससे विपरीत स्थितियों में लड़ने की प्रेरणा ले सकते है l यह एक सच है कि उसने कई प्रतिकूलताओं में से जीने का रास्ता निकाला और अपने लक्ष्य को पाने में सफल हुई l स्थिति का विश्लेषण कर ,अपनी विशेषताओं को ,अपने उपलब्ध स्रोतों को पहचान कर ,उन्हें बढ़ा कर उसमे से रास्ता निकालना और उसमे सफल होना उसके जीवन से हम सीख सकते है l इसी विशेषता के कारण कुंती का चरित्र मेरा आदर्श है l सनातन नेतृत्व /लीडरशिप के गुणों को अपना कर हम भी अपनी समस्याओं से अच्छी तरह से उबर सकते हैं l
उम्र बढ्ने के साथ मूत्र नियंत्रण की समस्या कई कारणों से बढ़ जाती है l इसका इलाज आयुर्वेद में अच्छी तरह से बताया है l
सौंफ ,अजवाइन ,जीरा,धनिया ,मेथीदाना ,मुलेठी इन सभी को साबुत 4 -4 ग्राम लेकर साँय काल गिलोय के साथ गरम पानी में भिगो दे l सुबह खाली पेट छान कर इसे पीए l
मूत्र विसर्जन करते वक्त मुँह से जीभ को गोल कर श्वास ले एवं मुँह से ही श्वास ज़ोर से छोड़े जैसे फूँक मार रहे हो ,मुँह का प्राणायाम करें ,इससे भी मदद मिलेगी l
गिलगिट – बाल्टिस्तान(POK) की हुंजा प्रजाति के लोग पूरे विश्व में धरती पर सबसे जयादा जीने वाले लोग होते है और उसका कारण है हुंजा घाटी की चमत्कारी चाय , दोस्तों हुंजा प्रजाति के लोग औसतन 100 साल से भी ज्यादा जीवित रहते है और यह अपने जीवन काल में हर रोज हुंजा चाय लेना पसंद करते है | हुंजा प्रजाति के लोग अपने फिटनेस को लेकर पूरे विश्व भर में मशहूर है,यहाँ ६५ वर्षीय तक महिला गर्भ धारण करती है l हुंजा प्रजाति के लोगों को आप कभी भी किसी प्रकार के बीमारी से ग्रसित नहीं होते है l
एंटी एजिंग हुंजा टी
हुंजा टी एक प्रकार का देशी हर्बल चाय है जो की बहुत सी बीमारों का जड़ से ख़तम कर देता है और इसे बहुत सारी सामान्य औषधि का उपयोग कर के बनाया जाता है और वह औषधि कुछ इस तरह है ..
दो कप चाय हेतु :
1. बारह पुदीना के पत्ते
2. आठ पत्ते तुलसी के पत्ते
3. एक या दो हरी इलायची
4. दो से 4 gram दालचीनी
5. अदरक का एक छोटा टुकड़ा
6. स्वाद के अनुशार गुड़/शहद
7. अँधा कटा नींबू ( स्वाद अनुसार )
यदि शहद के साथ लेनी है तो चूल्हे से उतार कर चाय में एक चम्मच शहद और निम्बू डाले l
दोस्तों हुंजा चाय बनाने के लिए यह सामग्रियां लगती है लेकिन अगर आप हूजा टी रोजाना बनाना चाहते हो तो आपके लिए सबसे अच्छा ये रहे गा की आप इन सामग्रियों को अपने तवे पर हल्का भुज के बाद इन्हे सूखा पीस ले और किसी डब्बे में रख दे ताकि आप आसानी से और कम समय में हुंजा टी का मज़ा ले पाए |
हुंजा टी को पीने के फायदे :
1. देशी चाय की आदत छोड़ने का यह सर्वोत्तम उपाय है,चाय की बजाय इसे पिए l
2. हुंजा टी पीने से शरीर एकदम स्वस्थ रहता है l
3. विद्वानों का मानना है की हुंजा टी के सेवन से आपको कोई बीमारी नहीं होती है और इससे आपकी जायद समय तक जीने के संभावना बढ़ जाती है l
4. प्रेग्नेंट महिला को डॉक्टर हुंजा टी का सेवन करने को कहता है l
5. अगर आपको हल्का बुखार हो तो भी आप हुंजा टी का सेवन कर सकते है l
6. अगर आपको का सर दर्द कर रहा है तो भी आप हुंजा टी का सेवन कर सकते है l
7. अगर आपके गले में कोई तकलीफ है तो भी आप हुंजा टी का सेवन कर सकते है l
8. अगर आपको खांसी आ रही है तो आप इसका सेवन कर सकते है इससे आपको खांसी आना बंद हो जाएगा l
9. यह हमारा वजन कम करने में हमारी मदद करता है l
10. हुंजा चाय गठिया बीमारी के लिए भी बहुत मददगार है l
11. इसका सेवन करने से बदहज़मी से राहत मिलती है l
12. यह शरीर के प्रतिरछा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद करता है l
13. यह हमें इंस्टेंट एनर्जी दे कर फुर्तीला बनाता है l