तनाव घटाने एवं रिलैक्स होने चन्द्र भेदी प्राणायाम करें

Left nostril pranayam
चन्द्र भेदी प्राणायाम में बाएं नथुने से श्वास ले एवं दाएँ नथुने से श्वास धीरे धीरे छोड़े l अभ्यास है तो कुम्भक भी कर सकते है l चन्दभेदी प्राणायाम से चन्द्र नाडी सक्रिय होती है l श्वास के धीमा एवं गहन होने पर इसे करे l इसमे बांये नासाछिद्र से धीरे धीरे गहरी श्वास लेने से चंद्र नाडी सक्रिय होती है एवं दांये से धीरे धीरे छोड़ने से सूर्य नाडी शिथिल होती हैं । एक आवृति से प्रारम्भ कर २० आवृति तक करे l धीरे धीरे कुम्भक का समय बढ़ाए l प्रत्येक आवृति के साथ श्वास को सहज होने पर आगे बढे l

जिनका बांया नथुना अधिक चलता है ऐसा व्यक्ति थका-थका रहता है व मस्तिष्क कम काम करता है । बांया नथुना अधिक चलने पर अस्थमा हो जाता है । दांया नथुने से ज्यादातर श्वास लेने पर मधुमेह होता है । दोनों नथुनों क्रमश संतुलित चलने चाहिए l
लाभ :
इस प्राणायाम को करने से परानुकम्पी स्नायु तंत्र तथा दांया मष्तिस्क अधिक सक्रिय होते है l
इससे मानसिक शांति ,शीतलता ,स्मरण शक्ति बढाता है l परानुकम्पी स्नायु तंत्र के सक्रिय होने से विश्राम गहन होता है एवं शरीर में रिपेयरिंग होती है l
इस प्राणायाम के करने से दांया मष्तिस्क अधिक सक्रिय होने से प्रेम, अन्तःबोध व सृजनान्तमकता का विकास होता है । यह ललना चक्र एवं बिंदु विसर्ग चक्र को विशेष सक्रिय करता है l
चन्द्र भेदी प्राणायाम क्रोध,बी पी, अम्लता, पार्किन्सन, ह्रदय रोग एव तनाव घटाता हैl
इससे शरीर में शिथिलता बढती है ,कफ घटता है , यह गर्मियों में विशेष लाभकारी है l पाचन क्रिया को सुचारू करने से फायदेमंद हैl

सावधानी :

चन्द्र नाड़ी शीतलता का प्रतीक है जो शरीर के तापमान को कम रखती है । चूँकि ग्रीष्म ऋतु में उष्णता बहुत होती है तो उससे बचने के लिए मनुष्य को चन्द्र भेदी प्राणायाम के साथ- साथ शीतली व शीतकारी प्राणायामों का अभ्यास भी करना चाहिए ।
निम्न रक्तचाप,श्वास एवं कफ सम्बन्धी रोगी इस न करे l
अत्यन्त मन्थरता और प्रयत्न रहित होकर किजिये ।
अंतरमुखी एवं मानसिक व्याधि ग्रस्त इसे न करे l
प्राणायाम का लक्ष्य इडा या पिंगला नाडी की बजाय सुषुम्ना नाडी को जगाना है , अत: इसे अधिक न करेl संतुलन हेतु एक समय में १५ मिनट से अधिक न करें l

योग द्वारा कैंसर को जीते

योग एवं कैंसर कैंसर रोग शरीर में ऑक्सीजन की कमी एवं प्रतिरोध क्षमता के घटने से होता है l ऑक्सीजन को बढ़ाने में  प्राणायाम सहायक है ,कार्बन डाइ ऑक्साइड के अधिक निष्कासन से ऑक्सीजन की मात्रा रक्त में बढ़ जाती है l इसलिए  ॐ का उच्चारण ,कपाल भाति,अनुलोम विलोम , भ्रामरी (गुंजन) एवं दीर्घ श्वसन  तीन से चार घंटे तक  करे l इस बिच में जड़ता मिटाने सूक्ष्म व्यायाम करे इसे एक साथ न कर दिन में दो तीन बार में करे l

भस्त्रिका  -५ मिनट

कपाल  भाति- १५-३०मिनट  

अनुलोम विलोम – १५-३० मिनट

भ्रामरी -५ मिनट

 योग निद्रा -१० मिनट

 सावधानी :

  • सर्जरी होने के बाद छ: माह तक कपाल भाति नहीं करें l
  • सभी क्रियाओ के बीच आसन एवं सूक्ष्म व्यायाम करेl
  • सहजता से करे l
  • योग करते वक्त ‘स्वस्थ हो रहा हूँ’ का आत्म सुझाव जरुर देते रहे l
  • अपने डॉक्टर एवं योग गुरु से विधि पूछ कर करें l

भोजन से खून बनता है  इसलिए  आहार शुद्ध एवं पोषक होना चाहिए ,योग-व्यायाम से खून शरीर में गति करता है इसलिए जीवन में योग एवं व्यायाम  नियमित करना जरुरी है  एवं श्वसन से खून शुद्ध होता है अत: श्वसन दीर्घ एवं गहरा करने हेतु   प्राणायाम अनिवार्य है  l तनाव ,अशांति ,आलस्य से खून की गति बाधित होती है l मल एवं विषाक्त द्रव्य खून की गति को शिथिल करते है इसीलिए षट्कर्म द्वारा शरीर को शुद्ध करने पर लाभ अधिक होगा  l

प्राण हमारे जीवन के मालिक है एवं प्राण बढ़ाने के उपाय

pran urjaहमारे जीवन का अधिपति प्राण है l हम प्रतिपल प्राण ऊर्जा ले रहे हैl लेकिन यह हमारे हाथ में प्रत्यक्ष रूप से नहीं हैl इसमें ब्रहांडीय रेखागणित, जलवायु, वातावरण एवं भावों की बड़ी भूमिका है l अचेतन रूप से यह हमें निरंनतर अपनी ज्यामिती, आहार, विचार प्रकिया ,श्वसन एवं  भावों  के अनुरूप प्राप्त हो रही है l अर्थात शरीर की प्रक्रति, स्थिति, एवं बनावट, मन में चलते विचारों एवं भावों की प्रक्रति ,स्थिति, गहनता, पेट में पड़ा भोजन, श्वसन की गहनता, सघनता, लयबद्धता एवं उसकी गति प्राण प्रवाह को तय करते है l अचेतन में दबे भाव, विचार, कुण्ठाएँ, सपने भी प्राणों के प्रवाह को दिशा देते है l

हमारी सोच,आहार आदि सारी गतिविधियां  प्राणों से जुड़े हैl प्राणों का अबाधित प्रवाह ही हमें स्वस्थ रखता है l इसके कम होने, रुकने, गलत अंग में अधिक जाने या किसी अंग में कम जाने वह अंग प्रत्यंग सुचारू रूप  से कार्य नहीं करता है ऐसे में रोग होते हैl  इसकी कार्य प्रणाली में विघ्न पड़ता है l

आसन, प्राणायाम, बंध, मुद्रा ,ध्यान आदि से प्राणों को बढाया जा सकता है l पूजा पाठ, प्रार्थना, सत्संग, यज्ञ, भजन, यात्राएं आदि से प्राण को व्यवस्थित करते है l संगीत ,नहाने, घुमने से प्राण मिलते है l अच्छे विचार, अच्छे भाव करने, प्रेम करने, परोपकार करने से प्राण खिलते है l

आम तौर पर अगर आप किसी भी खूबसूरत अनुभव को, ‐ चाहे वह स्वाद हो, गंध, दृश्य, ध्वनि या स्पर्श हो, ‐चौबीस मिनट तक कायम रख पाएं, तो वह आपके संपूर्ण प्राण तत्व में व्याप्त हो जाएगा।

भाव सहित करे जो प्राणायाम रोग मुक्ति ताहि को होय

भावमय होकर, ॐ के जाप के साथ प्राणायाम करने से साठ प्रतिशत लाभ बढ़ जाता है ।इसी से पंच तत्वों में समन्वय होने से रोग ठीक होते हैं। भावनात्मक लगाव के बिना  प्राणायाम मात्र शारीरिक  व्यायाम बन कर रह जाता है l  सूक्ष्म शरीर  के शुद्धीकरण हेतु भावनाओ के साथ करना जरूरी है l

प्राणायाम करते वक्त भाव करें कि  मुझ में प्रथ्वी सा धीरज,जल सी शीतलता,अग्नि सा तेज,वायु सा वेग व आकाश सी विशालता प्रकट हो रही है।चारों तरफ से बरसते प्राण को महसूस करना है l धन्यवाद के अहोभाव में प्राणायाम करे l  इसे करते रहने से शक्तिपात  स्वतं होता हैं।

प्राण ही औषधि हैं।प्राण ही ऊर्जा हैं। प्राण ही ब्रह्म है।प्राण ही जीवन है।

हार्ट ब्लोकेज खोलने हेतु योगिक क्रिया कर स्टंट लगवाने से बचे

इससे हृदय के पास रक्त शिराओ में जमा कोलेस्त्रोल हटने लगता है l

प्रथम चरण :

सर्वप्रथम विश्राम की मुद्रा में खड़े हो , अब सीने को फुला कर एक हाथ से मुट्ठि को नावनुमा बंद  कर   एक  तरफ  सीने पर जोर से    २० बार मारे l अंदर हाथ में हवा भरी ही रहने दे , इससे हृदय मजबूत होता हैंl फिर दूसरी तरह इसी प्रकार  बीस बार सीने पर मारे , इससे  ह्रदय  व पुरे वक्षस्थल की मालिस भी हो जाती है l

द्वितीय चरण :

श्वास छोड़ते हुए एक हाथ से मुट्ठी बंद कर मारते हुए एवं श्वास धीरे से छोड़ते रहे l इससे ब्लोकेज  खुलते है l इसके बाद विश्राम करें l

( आभार : योग विशेषज्ञ पूर्ण सिंग राठोड़ )