पुरुष ग्रंथि आकार में अखरोट के बराबर होती है ,मूत्र नली से जुडी होती है l श्रोणि प्रदेश में होने से अंदर दबी रहती हैl यह एक मर्म स्थान में है इसलिए प्रत्यक्ष रूप से इसको प्रभावित करना कठिन है, लेकीन श्रोणी प्रदेश -पेल्विक फ्लोर पर कार्य कर इस पर कार्य किया जा सकता है l
योग के अनुसार निम्न योग उपयोगी है :
1 प्रार्थना – ॐ का ३ बार उच्चारण- वज्रासन में बैठ कर
२ आसन
I. अर्ध शलभासन : इसमें पीठ के बल लेटकर एक पाव ऊँचा करना है lपीठ की पेशियाँ मजबूत होती है l
शलभासन: इससे कमर,नितम्ब एवं दोनों पावों की मांसपेशियों की शिथिलता एवं संकुचन मिट जाता है l इनमें जमा विषाक्त द्रव्यों को हटाता है lप्राणों के प्रवाह को संतुलित करता है lयह उदर ,यकृत एवं गुर्दों को क्रियाशील कर सुचारू एवं संतुलित बनाता है lशलभासन सम्पूर्ण स्वचालित तंत्रिका तंत्र को उद्दीप्त करता है l इस सबसे श्रोणि प्रदेश को मजबूत करने से प्रोस्ट्रेट ग्रन्थि कुशलता से कार्य करती है l
II. अर्ध पवन मुक्तासन: पहले दाये पाव को मोड़ कर करते है l जिनको सरवाईकल ,बी पी ज्यादा रहती हो वे गर्दन ऊँची नहीं करे l बाद में दुसरे पाँव के साथ करे l
पवन मुक्तासन: यह दोनों पावो के साथ करना हैl
III. विपरीतकरनी – सर्वांगासन
IV. सेतु बन्ध आसन – १० बार दोनों पावं विपरीत दिशा में फेलाए
सेतु बंध श्वशन- श्वास भरते हुए नितम्बों को उपर करे एवं श्वास छोड़ते हुए निचे आए ल इसके १० चक्र करने से लाभ अच्छा होता है l
V. तितली आसन
विधि :
पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए बैठ जाएँ,रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।घुटनो को मोड़ें और दोनों पैरों को श्रोणि की ओर लाएँ,पाँव के तलवे एक दुसरे को छूते हुए।दोनों हाथों से अपने दोनों पाँव को कस कर पकड़ लें। सहारे के लिए अपने हाथों को पाँव के नीचे रख सकते हैं।एड़ी को जननांगों के जितना करीब हो सके लाने का प्रयास करें।लंबी,गहरी साँस ले, साँस छोड़ते हुए घुटनो एवं जांघो को फर्श की ओर दबाएँ।
तितली के पंखों की तरह दोनों पैरों को ऊपर नीचे हिलाना शुरू करें। धीरे धीरे गति बढ़ाएँ।
साँस लेते रहें।
जितना संभव हो उतनी तेज़ी से प्रक्रिया को करें| धीमा करते हुए रुकें,गहरी साँस ले,साँस छोड़ते हए आगे की ओर झुकें,ठुड्डी उठी हुई,रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।कोहनी से जांघों या घुटनो पर दबाव डाले जिससे घुटने एवंजांघ जमीन को छुए।जाँघो के अंदरुनी हिस्से में खिंचाव महसूस करें और लंबी गहरीसाँस लेते रहें।मांसपेशियों को अधिक विश्राम दें।एक लंबी गहरी साँस ले और धड़ को ऊपर लाएँ।
साँस छोड़ते हुए धीरे से मुद्रा से बाहर आएँ,पैरों को सामने की ओर फैलाएं,विश्राम करें।
तितली आसन की दूसरी अवस्था –
सबसे पहले पीठ के बल सीधा लेट जाएं। फिर घुटने मोड़ें और दोनों पैरों के बीच गैप बढ़ाएं। कमर से निचले हिस्से को ऊपर की ओर उठाएं। फिर पेल्विक मसल्स पर तनाव बनाएं यानी स्ट्रेच करने की कोशिश करें। कुछ सेकंड बाद स्ट्रेच छोड़ दें। इसके २० चक्र करे l
इसे आप खड़े होकर एवं कुर्सी पर बैठ कर भी कर सकते हैl
3 प्राणायाम –
I. बाह्य प्राणायाम –
सिद्धासन या पद्मासन में विधिपूर्वक बैठकर श्वास को एक ही बार में यथाशक्ति बहार निकाल दीजिये। श्वास बाहर निकालकर मूलबंध, उड्डीयान बंध व जालन्धर बन्ध लगाकर श्वास को यथाशक्ति बाहर ही रोककर रखें।
जब श्वास लेने की इच्छा हो तब बन्धो को हटाते हुए धीरे-धीरे श्वास लीजिए।श्वास भीतर लेकर उसे बिना रोके ही पुनः पूर्ववत् श्वसन क्रिया द्वारा बाहर निकाल दीजिये। इस प्रकार इसे ३ से लेकर २१ बार तक कर सकते हैं।
II. चन्द्र भेदी प्राणायाम : 5० चक्र / ५ मिनट
जिनका बांया नथुना अधिक चलता है ऐसा व्यक्ति थका-थका रहता है व मस्तिष्क कम काम करता है । बांया नथुना अधिक चलने पर अस्थमा हो जाता है । दांया नथुने से ज्यादातर श्वास लेने पर मधुमेह होता है ।
बाएं नथुने से श्वास ले एवं बाएँ नथुने से श्वास छोड़े l इसे कम से कम ५ .५ मिनट तक तीन चक्र तक करे l चन्दभेदन प्राणायाम से चन्द्र नाडी सक्रिय होती है l
इसमे बांये नासाछिद्र से धीरे धीरे गहरी श्वास लेकर दांये से धीरे धीरे छोड़ते हैं ।
लाभ :
चन्द्र भेदी प्राणायाम क्रोध,बी पी, अम्लता, पार्किन्सन, ह्रदय रोग एव तनाव घटाता हैl इससे मानसिक शांति ,शीतलता ,स्मरण शक्ति बढाता है l इस से विश्राम गहन होता है एवं शरीर में रिपेयरिंग होती है l
इस प्राणायाम के करने से प्रेम, अन्तःबोध व सृजनान्तमकता का विकास होता है । इससे शरीर में शिथिलता बढती है ,कफ घटता है , यह गर्मियों में विशेष लाभकारी है l पाचन क्रिया को सुचारू करने से फायदेमंद हैl
सावधानी :
निम्न रक्तचाप,श्वास एवं कफ सम्बन्धी रोगी इस न करे l
अत्यन्त मन्थरता और प्रयत्न रहित होकर किजिये ।
अनुलोम विलोम प्राणायाम- ध्यान में जाना हो तो
मुद्रा –
अपान मुद्रा
अश्विनी मुद्रा –
मूल बंध -उड़डीयान बंध लगाएँ l
योग निद्रा – कम से कम २० मिनट – इसमें पुरे शरीर को शिथिल करने के साथ श्रोणी प्रदेश के सभी अंगो –पेडू,लिंग,अंडकोष,पेरिनियम ,पुरुष ग्रंथि को शिथिल करेl