जब भी आप खाली बैठे हो और कुछ करने को न हो तो, अपने नीचे के जबडे़ को शिथिल कर ले और मुंह को हल्का सा खोल ले। मुंह से श्वास लेना शुरू करें, लेकिन बहुत गहरी नही। शरीर को ही श्वास लेने दे ताकि श्वास उथली ही रहे। और वह और और उथली हो जावेगी। और जब आप देखेंगें कि श्वास काफी उथली हो गई है और मुुुह खुला हुआ है और आपका जबडा शिथिल है, तो आपका पुरा शरीर बहुत विश्रामपूर्ण अनुभव करेंगा। उस क्षण में एक मुस्कान उठती महसूंस करे-चेहरे पर ही नही बल्कि अपने पूरे प्राणों पर। और आपको बराबर अनुभव होगा। यह ऐसाी मुस्कान नही है जो होठों पर आती है-यह अस्तित्वगत मुस्कान है, जो भीतर-भीतर फैलती है।
इसको करने से ही ख्याल आऐगा कि यह क्या हे? क्योंकि इसे समझाया नही जा सकता। चेहरे पर होठो से मुस्कुराने की कोई जरूरत नही है, बल्कि ऐसे जैसे कि आप पेट से मुस्कुरा रहे हो। जैसे पेट से मुस्कान उठ रही हो। और यह एक मुस्कान है।
हंसी नही इसलिये यह बहुत ही कोमल और नाजुक है-जैसे कि एक गुलाब का फूल पेट में खिला हो और उसकी सुगंध पूरे शरीर पर फैल रही हो। एक बार आपकेा ख्याल आ जाएगा कि यह मुस्कान क्या है? तो आप चैबीस घंटें आनन्दित रह सकते है। और जब भी आपको लगे कि वह आनन्द खो रहा है बस आंखें बन्द करें और उस मुस्कान को फिर से अनुभव में ले ले। और वह वहाॅ होगी। और दिन में जितनी बार भी आप चाहे उस मुस्कान का आनन्द ले सकते है। वह सदा ही वहाॅ मौजूद है।
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