मैंने उक्त प्रयोग 16 वर्ष की उम्र में अपने पिता के मार्गदर्शन में एक वर्ष तकविधिवत किया और उसके परिणाम स्वरूप कभी तन में सुस्ती आज तक अनुभव नहीं की lपुनः यह प्रयोग ६० वर्ष पुरे होने पर बारह साल तक विधिवत किया और ७२ वर्ष के होने पर भी 40 वर्ष जैसा निरोग अनुभव करता रहा l१९७७ तक त्रिफला लेते हुए आठ वर्ष हो गये थे lआठ वर्ष तक त्रिफला लेने पर शरीर में कायाकल्प हुआ ऐसा जानपड़ा –‘वृद्धतन तरुण होई पुनि अष्टम’ l मेरी १९७७ में कुल्हे की हड्डी एक्सीडेंट में टूटी तब उसी साल में मुंबई हॉस्पिटल के डॉक्टरी पेथोलोजिकल रिपोर्ट के अनुसार खून में हीमोग्लोबिन१६’५ प्रतिशत (१० से 12 प्रतिशत के स्थान पर ) और आर बी सी 56 लाख (44लाख के स्थान पर )था l
अभी भी मै पूर्णतया निरोग हूँl आज भी मै रोजाना दस मील साइकिल चलता हूँ lकभी कभी आठ मील पैदल भी चलता हूँ l साइकिल से अथवा पैदल चलने से बिलकुल थकावट मालूम नहीं होतीl शरीर में कहीं दर्द ,दुखना या कोई शिकायत नहीं है l शरीर में जवान आदमी जैसी स्फूर्ति बनी हुई है lखाने -पीने का कोई परहेज नहीं करता lशाकाहारी भोजन करता हूँ l त्रिफला के सेवन से मुझे व मेरे १००-150अन्य व रिश्तेदारों को आश्चर्यजनक लाभ हुआ l यह इलाज लम्बा जरुर है ,लेकिन मेरे साथियों को शत प्रतिशत लाभदायक साबित हुआ है l
अभी भी मै 84 वर्ष की उम्र में पूर्णतया निरोग हूँ l आठ घंटे नित्य नियम से धार्मिक ग्रन्थ का पठन पाठन व स्वाध्याय करता हूँ l चश्मा नहीं लगाता हूँ l एक घंटा रोज प्रात: पैदल घूमता हूँ l त्रिफले का 25 वर्षो से रोजाना सेवन करता हूँ l
–शिरोमणि चन्द्र जैन ‘नवकार’,आर -१४,अनुपम नगर, रायपुर
( आभार – अजित मेहता की पुस्तक ” स्वदेशी चिकित्सा सार” से उद्र्ट प्रस्तुत )
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