बीमारी क्या कहती है?

हमारा शरीर तंत्र हमें फीडबैंक देने के लिए बीमारी उत्पन्न करता है। इसके माध्यम से यह हमें बताता है कि हमारा दृष्टिकोण संतुलित नहीं है या हम प्रेमपूर्ण और कृतज्ञ नहीं हैं। शरीर के संकेत और लक्षण भयंकर चीज़ नहीं हेैं।                                                                   -डाॅ. जाॅन डेमार्टिनी

टालस्टाय की एक प्रसिद्ध कहानी है। प्रारम्भ मंे जब ईश्वर ने जगत् को बनाया तो सब कुछ उपलब्ध था। तब जगत मंे कर्म की आवश्यकता न थी, इन्सान फल-फूल खाते थे। ईश्वर ने देखा कि आदमी प्रसन्न नहीं है। अतः उसने आदमी को प्रसन्न करने के लिए कर्म पैदा किये। मेहनत करो, फसलें बोओ, उन्हें बड़ी करो व खाओ। ईश्वर ने फिर देखा कि इस पर भी मनुष्य प्रसन्न नहीं है। अतः ईश्वर ने मृत्यु अनिश्चित कर दी ताकि लोग लड़े नहीं व प्रेम से रहे। लेकिन फिर भी मनुष्य शान्ति से न रह रहा था। तब उसने रोग पैदा किए ताकि मनुष्य सुख-दुःख को पहचानें व प्रसन्नता से रह सके। अर्थात् रोग का भी जीवन मंे महत्व है। हमें अपनी सीमा मंे रहने, विश्राम करने व विकार निकालने हेतु बीमारी जरुरी है। शरीर में बीमारी संकेत करती है कि हमारी जीवन-शैली ठीक नहीं है।
महाभारत में कुन्ती सदैव दुःख को चुनती है। कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद भी वह राजमाता बन कर राजमहलों मंे रहने की अपेक्षा धृतराष्ट्र-गांधारी, विदूर के साथ वन जाना पंसद करती है। आखिर क्यों? ईश्वर को सदैव याद रखने की इच्छा के कारण कुन्ती दुःख चुनती है, कठिनाईयाँ चुनती है। वह सरल मार्ग पंसद नहीं करती है। सुख में व्यक्ति परम् सत्ता को भूल जाता है, वह अपने आप को भूल जाता है। अर्थात् रोग भी वैसे ही नहीं आते हैं। वे एक संदेश देते हंै। विश्व नियन्ता के अनुसार आए है। शरीर के विषाक्त द्रव्यों को बाहर फेंकने आये है। अतः उसके द्वारा मिलने वाले पाठ को ग्रहण करें तो बीमारी अभिशाप नहीं है। रोग के होने का भी कोई प्रयोजन है। उससे घबराने की जरुरत नहीं है। बीमारी नई दृष्टि देती है एवं अपनो को परखने का अवसर देती है। नार्मन कुजिन्स ने ‘‘ एनाटोमी आफॅ इलनेस’’ मंे लिखा है कि विपत्ति आने पर ही व्यक्ति अपनी आदतें बदलता है। अतः बीमारी वरदान भी बन सकती है।

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